आज का गर्व –Father's Day पर पिता के नाम समर्पित
(बेटी-जवाई उषा एवं शरद जी मालपानी, और बेटे-बहुएं - अनिल एवं सुनीता लढा, संजय एवं वंदना लढा, डॉ हरिओम एवं सोनल लढा
आज इस Father’s Day पर गर्व से उनके जीवन की इस प्रेरक यात्रा को दुनिया से साझा कर रहे हैं।)
श्री जगदीश प्रसाद लढा – संघर्ष, सिद्धांत और सरलता का जीवंत उदाहरण
11 जनवरी 1940, राजस्थान के नावा सिटी में जन्मे श्री जगदीश प्रसाद लढा का जीवन किसी उपन्यास की तरह है - जिसमें दुख की भूमिका भी है,
संघर्ष की भी, लेकिन सबसे अधिक आत्मबल और आत्मसम्मान की भूमिका है।
जब किसी जीवन की शुरुआत ही माँ की ममता के बिना हो, तो परिस्थितियाँ बहुत कुछ छीन लेती हैं - लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो हर "छीने गए
सुख" को जीतने के संकल्प से जीते हैं। पिता स्व श्री कल्याणमल जी लढा और माता स्व श्रीमती केसर देवी लढा की गोद में जन्मे जगदीश जी को मात्र 5 वर्ष की उम्र में मातृस्नेह से वंचित होना पड़ा। इस मुश्किल वक्त में चार भाई बहन में उनकी बड़ी बहन स्व श्रीमती रतन देवी पलोड - जो सच में परिवार की ‘रत्न’ थीं - माँ जैसी छाया बनकर उनके जीवन की आधारशिला बनीं।
दूसरे स्व श्री बीरदीचंद जी लढा, चौथी स्वयं उनसे छोटी बहन श्रीमती शांति देवी मालू ।
उनका बचपन एवं किशोरावस्था संघर्ष से भरा था। किशोरावस्था में अपनी पढ़ाई और आवश्यकताओं के लिए खुद ही रास्ते बनाने पड़े।
10वीं तक की पढ़ाई डीडवाना और रेनवाल में पूरी की, फिर जयपुर में कॉलेज की पढ़ाई की।
उनके जीवन में चाचा स्व श्री शंकरलाल जी लढा का मार्गदर्शन विशेष रहा। उन्होंने न सिर्फ उन्हें घर-परिवार के निर्णयों में भागीदार बनाया, बल्कि आत्मविश्वास भी दिया।