जब कोई पूछता है,"जो हर कला में निपुण हैं, हर कुछ दिनों में कुछ नया कर डालती हैं, और हर रिश्ते की जरूरत पर सबसे पहले पहुंचती हैं, हमे तो उस माँ से मिलना है जिसने आपको जन्म दिया है " तो कृष्णा बिड़ला और उनकी माँ श्रीमती भगवती देवी सारडा के मन को आत्मसंतोष मिल जाता है।
खास बात यह है कि यह केवल कभी-कभार सुनने को मिलने वाला वाक्य नहीं है - बल्कि यह एक नियमित पहचान बन चुकी है।
कृष्णा बिड़ला – एक ऐसा नाम जिसे कुछ लोग पिछले 30 वर्षों से श्याम बाबा की पदयात्रा और उनकी धार्मिक सेवाओं के लिए जानते हैं, तो कुछ उन्हें कॉलोनी की हर समस्या का समाधान मानते हैं। आयोजन हो या मुश्किल की घड़ी – "बिड़ला भाभी जी" का नाम ही सबसे पहले सामने आता है।
विवाह और परिवार के प्रति समर्पण में अनुकरणीय उदाहरण
8 फरवरी 1982 को उनका विवाह कलकत्ता निवासी स्व श्री मदन लाल जी बिड़ला के पुत्र CA श्री चांद रतन बिड़ला से हुआ और वे हिंद मोटर, कलकत्ता चली गईं।
उनके पति श्री चांद रतन बिड़ला गर्व से बताते हैं कि "विवाह के एक साल बाद जब मैं अपनी CA की पढ़ाई पूरी करी उस समय परीक्षा के दिन बजाय पीहर जाकर दूर रहने के बजाय साथ रह कर पढ़ाई के नोट्स बना बना कर देना इस तरह से CA पास होने में मेरा सहयोग किया ।
1989 में LIC एजेंट के रूप में प्रोफेशनल लाइफ की शुरुआत की और करीब 1200 लोगों को उनके अनुकूल जीवन बीमा पॉलिसी देने में मेरा सहयोग किया।
जयपुर आने पर मेरी प्रैक्टिस के शुरुवाती दौर में डेली 5,6 घंटे उनके काम में एक सहयोगी की तरह पूरी ईमानदारी और लगन से कार्य किया ।"
पति श्री चाँद रतन जी की नौकरी के अनुसार अक्टूबर 84 में बड़ौदा और जनवरी 90 में जयपुर शिफ्ट हुए। हर शहर में नए सिरे से संघर्ष होता है - और कृष्णा बिड़ला ने अपने पति के संघर्ष में बराबरी की भागीदारी निभाई। जयपुर आने के कुछ वर्षों में ही उनके पति ने जब अपनी प्रैक्टिस शुरू करने का मानस बनाया तो, घर को आर्थिक सम्बल देने के लिए शुरू में उन्होंने घर से ही लॉटरी व्यवसाय किया, जो उस समय आमदनी का एक अच्छा जरिया था। पर जैसे ही पति की सीए प्रैक्टिस शुरू हुई, उन्होंने सारा ध्यान परिवार पर केंद्रित कर दिया।
ससुराल में उन्होंने माता-पिता के संस्कारों से ऐसा स्थान बनाया कि हर परिवारजन उन्हें सबसे पहले पुकारता। सासु माँ की सेवा, स्नेह और आत्मीयता से उन्होंने ऐसा रिश्ता बनाया कि घर के लोग मज़ाक में कहते थे कि बाई की तो 10 माला कृष्णा नाम की बिना बोले ही हो जाती है। सास ससुर की सेवा की एवं सभी के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया। उनके जीवन की संतुष्टि इसी में है कि उन्होंने अपनी सासु जी की सेवा अंतिम समय तक की और उन्हें अपनी गोद में विदा किया।
विशेष बात ये कि उन्होंने इन सभी के बीच समय निकल कर सभी तीर्थ यात्रायें और विदेश भ्रमण भी किया।
आज उनके परिवार की एकता, प्रेम और व्यापारिक सफलता को वे अपने सास ससुर के आशीर्वाद का परिणाम मानती हैं।