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अभी तक मैं उन्हें एक सीनियर सिटीजन की तरह ही जानता था। जो रोजाना शाम को सोसाइटी के बाकी सीनियर सिटीजन के साथ बैठ के गप्पें लड़ाते थे और बीच बीच में बाकी सभी की तरह ठहाके लगाते रहते थे। नरेश ओझा जी का चेहरा सामान्य लोगो से ज्यादा तसल्ली भरा और खुश दिखाई देता था।
उन्हें आप सोसाइटी के क्रिकेट मैचों में दर्शकों के बीच बैठे उत्साहित, उत्तेजित, शोर मचाते और तालिया बजाते देख सकते हो।
मुझे जब पता चला कि उन्हें बिलकुल दिखाई नहीं देता है, उस दिन आश्चर्य हुआ कि जीवन में आँखों के बिना भी कोई इतना खुश कैसे रह सकता है !
अनुकम्पा प्लेटिना के 500 परिवारों में सबसे पॉपुलर लोगों में से एक नरेश ओझा जी, उसका मूल मंत्र यही बताते हैं कि
"अगर आप रोजाना दुखों का रोना रोते रहोगे, तो लोग दूर हो जाएंगे। लेकिन अगर आप खुश रहोगे, तो सभी आपका साथ चाहेंगे।"
आश्चर्य की चरम सीमा तब थी जब पता चला कि 70 वर्ष की उम्र के नरेश ओझा जी अपने घर में अपनी लाइफ को सामान्य लोगों से ज्यादा
व्यवस्थित रखते है और अपने बाथरूम को साफ़ सुथरा रखने से लेकर कपडे जमाना, पानी की बोतले भरना, इलेक्ट्रिक कैटल में से गरम पानी
अपनी बोतल में डालना। कई ऐसे काम इतने दक्षता से और ख़ुशी से करते हैं कि जिनमे दिखने वालों से भी गलतियां हो जाएं।
ओझा जी को 100 से ज्यादा मोबाइल नंबर याद हैं। नार्मल की बोर्ड वाला फ़ोन रखते हैं और जब भी कोई काम हो या किसी को कॉल करना हो तो
बिना किसी कि सहायता के लगा लेते हैं। सभी के बर्थडे और एनिवर्सरी उन्हें मुँह जबानी याद रहती है।
"तकलीफ़ को अधीन करो, तकलीफ़ के अधीन मत हो जाओ।"
ये महज एक पंक्ति नहीं, बल्कि नरेश ओझा जी के पूरे जीवन का सार है।