खाटू के बाबा श्याम के उद्भव की अद्भुत कहानी एवं उससे जिंदगी में सीखने लायक बातें

श्री श्याम बाबा

श्री श्याम बाबा

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जैसा कि आप सभी श्याम प्रेमी जानते हैं कि बचपन के बर्बरीक ही बाद में खाटू के बाबा श्याम के नाम से प्रसिद्ध हुए।

बर्बरीक पांचों पांडवों में सर्वाधिक बलशाली भीम और उनकी पत्नी हिडिम्बा के पौत्र एवं घटोत्कच और माता मौरवी के पुत्र हैं ।
कहा जाता है कि जन्म के समय बर्बरीक के बाल बब्बर शेर के समान थे, अतः उनका नाम बर्बरीक रखा गया ।
बर्बरीक बचपन में एक वीर और तेजस्वी बालक थे । बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण और अपनी मां मौरवी से युद्धकौशल 
सीखकर निपुणता प्राप्त कर ली थी ।


एक बार भगवान शिव की तपस्या करते हुए बर्बरीक ने देखा कि शिव जी के एक नेत्र से रक्त आ रहा है तो बर्बरीक ने  अपनी एक आँख निकल कर शिव जी के लगा दी।  तभी देखा कि उनके दूसरे नेत्र से भी रक्त बहने लगा तो बर्बरीक ने दूसरी आँख भी शिव जी के लगा दी। ऐसा करते ही शिव जी प्रकट हो गए और आशीर्वादस्वरुप भगवान शिव ने बर्बरीक को 3 चमत्कारी बाण प्रदान किए । इसी कारणवश बर्बरीक का नाम तीन बाणधारी के रूप में भी प्रसिद्ध है।

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Unmatchable devotion and dedication is needed for getting Superpowers.

जब कौरवों-पांडवों का युद्ध होने का सूचना बर्बरीक को मिली तो उन्होंने भी युद्ध में भाग लेने का निर्णय लिया। 
बर्बरीक ने अपनी मां का आशीर्वाद लिया और उन्होंने पुछा कि उन्हें किस का साथ देना है तो माँ को लगा कि कौरवों के पास तो बड़ी सेना और  द्रोणाचार्य एवं भीष्म पितामह जैसे शूरवीर हैं तो पांडव हार जायेंगे इसलिए उन्हें हारे हुए पक्ष का साथ देने को कहा।  
इसी वचन के कारण हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा यह बात प्रसिद्ध हुई ।

भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक की परीक्षा लेने के लिए ब्राह्मण का रूप धर लिया और बर्बरीक को मार्ग में रोक लिया और पुछा कि
बर्बरीक मात्र 3 बाण लेकर लड़ने को जा रहा है?  मात्र 3 बाण से कोई युद्ध कैसे लड़ सकता है। बर्बरीक ने कहा कि उनका एक ही बाण शत्रु सेना को समाप्त करने में सक्षम है और इसके बाद भी वह तीर नष्ट न होकर वापस उनके तरकश में आ जायेगा । अतः अगर तीनों तीर के उपयोग से तो सम्पूर्ण जगत का विनाश किया जा सकता है।

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ब्राह्मण ने बर्बरीक से एक पीपल के वृक्ष की ओर इशारा करके कहा कि वो एक बाण से पेड़ के सारे पत्तों को भेदकर दिखाए । बर्बरीक ने भगवान का ध्यान कर एक बाण छोड़ दिया, इधर श्री कृष्ण ने मौका मिलते ही एक पत्ते तो अपने पैर के नीचे छुपा लिया। 
जब ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण ने कहा कि अभी एक पत्ता बाकि है तो बर्बरीक ने कहा , हे ब्राह्मण देवता, कृपया अच्छे से देखिये वो पहले ही बींध गया है तो 

भगवान कृष्ण समझ गए कि जिससे पत्ते को कृष्ण स्वयं नहीं बचा सके उस जैसा वीर मिलना संभव नहीं है। कृष्ण बर्बरीक के पराक्रम से अति प्रसन्न हुए.

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उन्होंने बर्बरीक से पूछा कि वे महाभारत के युद्ध में किस पक्ष का साथ देंगे। इस पर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि उन्होंने किसी एक पक्ष का चयन नहीं किया है। वे तो केवल अपने वचन के अनुसार उसी ओर से युद्ध करेंगे जो पक्ष पराजित होता दिखेगा। श्रीकृष्ण यह सुनकर गहराई से सोच में पड़ गए, क्योंकि बर्बरीक के इस वचन की जानकारी कौरवों को थी।

कौरवों ने योजना बनाई थी कि युद्ध के पहले दिन वे जानबूझकर कमज़ोर सेना के साथ युद्ध करेंगे, ताकि वे हारने लगें और बर्बरीक उनके पक्ष में लड़ने आएं। यदि ऐसा हुआ, और बर्बरीक कौरवों की ओर से युद्ध करते, तो उनकी अद्भुत शक्ति वाले बाण पांडवों का विनाश कर सकते थे।

इस योजना को निष्फल करने के लिए श्रीकृष्ण ब्राह्मण का रूप धारण कर बर्बरीक के पास गए और उनसे एक विशेष दान देने का वचन माँगा। बर्बरीक ने सहर्ष दान देने की सहमति दी। तब ब्राह्मण ने उनसे कहा कि उन्हें दान में बर्बरीक का सिर चाहिए। यह सुनकर बर्बरीक अचंभित रह गए और समझ गए कि यह साधारण ब्राह्मण नहीं हो सकता।

बर्बरीक ने निवेदन किया कि वे अपने वचन अनुसार शीशदान अवश्य देंगे, लेकिन पहले ब्राह्मण अपना असली स्वरूप दिखाएं। तब भगवान श्रीकृष्ण अपने दिव्य रूप में प्रकट हुए।

बर्बरीक ने उन्हें प्रणाम किया और कहा, “हे प्रभु! मैं अपना शीश अर्पित करने के लिए वचनबद्ध हूँ, लेकिन मेरी एक इच्छा है – मैं यह महान युद्ध अपनी आँखों से देखना चाहता हूँ।”

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Don't loose hopes even if you have lost everything.
Ask for unique proposition whenever you get chance.

श्री कृष्ण ने बर्बरीक की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर उसकी इच्छा पूरी करने का आशीर्वाद दिया । बर्बरीक ने अपना शीश काटकर श्री कृष्ण को दे दिया श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को 14 देवियों के द्वारा अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक पहाड़ी पर स्थित कर दिया, जहां से बर्बरीक युद्ध का दृश्य देख सकें ।  इसके पश्चात कृष्ण ने बर्बरीक के धड़ का शास्त्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार कर दिया ।
 

महाभारत का महान युद्ध समाप्त हुआ और पांडव विजयी हुए । विजय के बाद पांडवों में यह बहस होने लगी कि इस विजय का श्रेय किस योद्धा को जाता है । श्री कृष्ण ने कहा-चूंकि बर्बरीक इस युद्ध के साक्षी रहे हैं अतः इस प्रश्न का उत्तर उन्ही से जानना चाहिए । तब परमवीर बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध की विजय का श्रेय एकमात्र श्री कृष्ण को जाता है, क्योंकि यह सब कुछ श्री कृष्ण की उत्कृष्ट युद्धनीति के कारण ही सम्भव हुआ, विजय के पीछे सब कुछ श्री कृष्ण की ही माया थी ।

Life Lesson's Learning : 

Whenever you are given a chance, give unbiased view on the matter.

बर्बरीक के इस सत्य वचन से देवताओं ने बर्बरीक पर पुष्पों की वर्षा की और उनके गुणगान गाने लगे । श्री कृष्ण वीर बर्बरीक की महानता से अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा -हे वीर बर्बरीक आप महान हैं । मेरे आशीर्वाद स्वरूप आज से आप मेरे नाम श्याम से प्रसिद्ध होओगे । कलियुग में आप कृष्णअवतार रूप में पूजे जायेंगे और अपने भक्तों के मनोरथ पूर्ण करेंगे ।

( इंटरनेट एवं पुस्तकों में प्रकाशित कहानियों एवं श्री कुमार नरेंद्र जी से बातचीत के द्वारा संकलित)

वैधानिक चेतावनी : 

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नाट्य रूप में आयोजित करवाने हेतु  श्री नवीन शर्मा : 9414253980

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