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विजय सारडा (रेनवाल) का नाम आते ही एक ऐसी शख्सियत की छवि उभरती है, जिसने व्यवसाय, समाज और परिवार - तीनों को एक साथ साधा है। वे सिर्फ एक सफल उद्यमी नहीं, बल्कि एक जुझारू स्वयंसेवक, समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं।
विजय सारडा ने ‘संस्कार प्रोडक्ट्स’ की स्थापना की - अगरबत्ती, धूप और रुई-बत्ती के निर्माण में एक अलग पहचान बनाई। इस व्यवसाय को उन्होंने केवल एक उत्पाद नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और भावनाओं का प्रतीक माना।
पारिवारिक पृष्ठभूमि - संस्कारों एवं राष्ट्रसेवा की नींव - बचपन से
विजय जी के जीवन की शुरुआत ही प्रेरणा से हुई। उनके पूज्य पिता स्व. नवरत्न सारडा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के तृतीय वर्ष शिक्षित स्वयंसेवक थे।
उनके मार्गदर्शन और विचारों ने विजय जी को बचपन में ही संघ से जोड़ा। वहीं से उन्हें योग, अनुशासन, व्यायाम और राष्ट्रहित में जीवन समर्पण की भावना मिली, जो आज भी उनके विचारों में स्पष्ट झलकती है।
20 फरवरी 1980 को जन्मे विजय सारडा अपने माता-पिता स्व. नवरत्न सारडा एवं स्व. श्रीमती शांति देवी सारडा के संस्कारों को जीवन में जीते हैं।
विजय सारडा ने बी.कॉम की शिक्षा की पर उन्होंने बच्चों की उच्च शिक्षा को सर्वोपरि रखा।
उनकी जीवनसंगिनी श्रीमती मीना सारडा (पुत्री: स्व. गोविन्द नारायण जी झंवर, बम्बाला वाले, सदैव उनके सामाजिक और पारिवारिक कार्यों में कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं। पुत्री सीए अदिति सारडा और पुत्र केशव सारडा (सॉफ्टवेयर इंजीनियर) ने भी उन्हीं मूल्यों में अपने जीवन की दिशा तय की है।