संघर्ष में संतुलन, जीवन में जिज्ञासा और संबंधों में सहजता की अनुपम मिसाल थे

Late Radhey Shyam ji Sharda

Late Radhey Shyam ji Sharda

बेटी-जवाई (कृष्णा एवं चांदरतन बिड़ला, सरोज एवं राजकुमार डागा, भावना एवं राकेश चांडक) और बेटा -बहु (देवेन्द्र एवं ज्योति शारडा) आज इस Father’s Dayपर गर्व से उनके जीवन की इस प्रेरक यात्रा को दुनिया से साझा कर रहे हैं।

संघर्ष में संतुलन, जीवन में जिज्ञासा और संबंधों में सहजता की अनुपम मिसाल थे 

 स्व श्री राधेश्याम सारडा जी

(जन्म :  2 मई 1931, स्वर्गवास : 6 जनवरी 2018)

जब भी स्व श्री राधेश्याम सारडा जी का नाम लिया जाता है, स्मृतियों में एक ऐसा व्यक्तित्व उभर आता है जो जीवन की कठिनाइयों को साहस, सादगी और सकारात्मक दॄष्टिकोण से पार करता रहा। 

कर्मभूमियाँ और कार्यक्षेत्र

अपने जीवन में उन्होंने रेनवाल, कोलकाता, मालुंजा, सोलापुर, कोटा, मुंबई और जयपुर को अपनी कर्मभूमि बनाया। खेती में नित नए प्रयोग उनका जूनून था। कोटा में कई साल उन्होंने खेती की। कोटा में बांगड़ ग्रुप की गोपाल मिल में सेवाएं दीं ।
अपने छोटे भाई श्री जुगल किशोर सारडा जो पहले से मुंबई में यह व्यवसाय कर रहे थे, उनसे समझ ले कर मुंबई में इम्पोर्ट लाइसेंस का स्वव्यवसाय किया । उन्हें नए अवसर तलाशने के लिए मुंबई ले जाने के लिए प्रेरित करने वालों में स्व श्री रामावतार जी खटोड़ का नाम भी परिवार में हमेशा याद किया जाता है। उन्होंने अपने सेटल हो जाने के बाद रेनवाल से अपने परिवारों के बच्चों को अपने साथ रख कर मुंबई में शुरुआत में पैर ज़माने में मदद करी । 
65 वर्ष की आयु में जयपुर में वापस आने पर श्री जे. के. जाजू जी के यहाँ नौकरी शुरू की । श्री जय किशन जाजू जी ने हमेशा अपने परिवार के बड़ों की तरह आदर दिया। और कभी उन्हें 18 वर्षो के कार्यकाल में कर्मचारी की तरह महसूस नहीं होने दिया । जाजू जी की रचनात्मक क्षमताओं, महत्वाकांक्षी सोच एवं दूरदर्शी नेतृत्व के प्रति उनका सम्मान और आदर जीवन भर बना रहा।

राधेश्याम जी ने खेती, लेखांकन, प्रबंधन और व्यापार जैसे विविध क्षेत्रों में दक्षता प्राप्त की। वे जीवन भर कुछ नया सीखने को तत्पर रहते। लेखांकन में उनकी ईमानदारी और सटीकता प्रसिद्ध थी - हाथ से बनाए गए उनके खातों में त्रुटि ढूँढना लगभग असंभव था।
 

सादगी और कर्मठता  जीवन मूल्य

उनका जीवन सादगी, अनुशासन और आत्मविश्वास का प्रतीक था। वे एक सच्चे कर्मयोगी और बहुत प्रैक्टिकल एप्रोच वाले व्यक्ति थे। 
65 वर्ष की आयु में जब लोग रिटायरमेंट की लाइफ जीना चाहते हैं, उन्होंने ना सिर्फ फुल टाइम जॉब चुना बल्कि सुबह शाम का समय बिताने के लिए घर के बाहर एसटीडी पीसीओ खोल लिया। पुणे शिफ्ट होने से पहले 83 वर्ष की उम्र तक वे जॉब पर जाते रहे। 

 वे मितव्ययी थे, किंतु अतिथि-सत्कार में अत्यंत उदार। बागवानी उनका प्रिय शौक था ।

प्रारंभिक जीवन और परिवार के प्रति समर्पण

स्व श्री राधेश्याम सारडा जी का जन्म 2 मई 1931 को राजस्थान के रेनवाल किशनगढ़ में हुआ। 

वे स्व श्री जगन्नाथ प्रसाद जी एवं श्रीमती उमा देवी सारडा के ज्येष्ठ पुत्र थे और पाँच भाइयों में सबसे बड़े। उनकी बड़ी बहन स्व श्रीमती भगवती देवी मांधना एवं स्व श्री सहसकरण जी मांधना (जोधपुर) को उन्होंने हमेशा बहुत सम्मान दिया।   

स्व श्री रामसहाय जी खटोड़ की पुत्री भगवती देवी के साथ उनका विवाह हुआ। उनके ससुर, स्व श्री रामसहाय खटोड़, जयपुर में समाज सेवा के लिए प्रसिद्ध थे। उन्हीं के नाम, उनके बेटों द्वारा प्रदत्त भूमि पर आज चांदपोल स्थित महेश अस्पताल संचालित है।

उनकी  29 वर्ष की उम्र में उनके पिताजी ने सन्यास ले लिया। उसके बाद परिवार की जिम्मेदारियों में वे हाथ बँटाने लगे। 

उन्होंने सबसे बड़ी बेटी कृष्णा को हमेशा “मेरा सबसे बड़ा बेटा” माना। उनकी पत्नी श्रीमती भगवती देवी ने हर कठिन परिस्थितियों में उनका साथ दिया और जब वे मुंबई में व्यवसाय के लिए गए तो तीनो बेटियों और एक बेटे को श्रेष्ठ शिक्षा दिलवाने के लिए वे कोटा में रही।  

उनके सबसे छोटे भाई रिटायर्ड विंग कमांडर श्री गोविन्द राम सारडा के शब्दों में "10th के बाद में कैरियर की दॄष्टि से चौराहे पर खड़ा था, तब भाईसाहब ने साथ देकर मेरे जीवन को दिशा दी। " 

image not found

व्यक्तित्व: गंभीरता में सहजता

राधेश्याम जी का व्यक्तित्व प्रथम दृष्टि में गंभीर और स्पष्टवक्ता प्रतीत होता था, लेकिन जो लोग उन्हें करीब से जानते थे, वे उन्हें सरल,  विनोदी और खुले दिल का व्यक्ति मानते थे। वे हर पीढ़ी के लोगों से सहजता से घुल-मिल जाते थे और जहाँ भी कुछ वर्ष रहते, वहाँ के लोग उनके प्रशंसक बन जाते

ना सिर्फ सारडा परिवार और खटोड़ परिवार में उन्हें बहुत मान दिया जाता था, बल्कि तीनो बेटियों के ससुराल में भी सभी से घनिष्टता थी।

रिश्तों में संतुलन की कला

परिवारजन बताते हैं कि वे किसी भी विषय पर असहमति खुलकर जताते थे, पर कुछ ही समय में विषय बदलकर उसी व्यक्ति से हँसी -मजाक शुरू कर देते थे।
उनका मानना था:  "विचारों में भिन्नता स्वाभाविक है, पर उसे खींचना रिश्तों में तनाव लाता है।"

उनके बेटे देवेन्द्र के शब्दों में "पापा जहाँ मुझे गलतियों पर डांटने वाले सबसे पहले व्यक्ति होते थे, वहीं अगर निराश होता था तो जिंदगी जब तक है, हार को जीत में बदलना संभव है। हर स्थिति को समझने वाले पिता को बहुत मिस करते हैं।"

स्वास्थ्य, अनुशासन और आत्मबल

स्वास्थ्य के प्रति उनकी सजगता उल्लेखनीय थी। 80 वर्ष की उम्र तक अस्पताल की आवश्यकता नहीं पड़ी।बाद में ICU में चार बार भर्ती होने के बावजूद वे हर बार अपनी इच्छाशक्ति से स्वस्थ होकर लौटे।

उनकी दिनचर्या अनुशासन का उदाहरण थी - 85 की उम्र तक वे रात 10 बजे सोते और सुबह 4:30 बजे उठकर प्रतिदिन 6-7 किलोमीटर पैदल चलते।

सीखते रहने की ललक

65 की उम्र में पूर्णकालिक नौकरी फिर से शुरू करना, 75 में दोबारा वाहन चलाना और 78 वर्ष की आयु में कंप्यूटर सीखने की इच्छा जताना - यह सब उनके जुझारूपन और जिज्ञासा की मिसालें हैं।

हरि ॐ - पहचान की एक अनूठी शैली

कॉल आते ही लोग बिना नंबर देखे समझ जाते कि यह सारडा जी का कॉल है। 
सुबह की सैर पर भी वे हर परिचित और अपरिचित को दूर से "हरि ॐ" कहकर अभिनंदन करते थे - यह उनकी आत्मीय शैली बन गई थी।

ॐ शांति।  

image not found

स्मृतियाँ : उनके स्नेह की डोर से बंधे लोगों द्वारा :

मैं नवरतन मानधना, राधेश्याम मामाजी की पूज्य जीजी भगवती देवी एवं पूज्य जीजाजी सहसकरण जी मानधना का पुत्र, मामाजी एवं मामीजी का लाडला भान्जा । 

अपने बचपन के दिनों में स्कूल की छुट्टियों में हमारे लिए मां के साथ रेनवाल अथवा कुछ बार कोटा आ जाना ही हिन्दुस्तान के सबसे अच्छे Tourist Places हुआ करते थे । सबसे ज्यादा मामाजी-मामीजी के लाड-प्यार बहुत लुभाते थे । 15 वर्ष की उम्र तक आना-जाना होता रहा और अब 71 वर्ष की आयु में उनके किये गये अनगिनत प्यार की याद आती है ।

इस प्रसंग में, एक पुरानी बात का उल्लेख करना चाहूंगा- कि मैं सन् 1969 में दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में प्रथम श्रेणी से पास हुआ । उस समय मैं छुट्टियों में माताजी के साथ कोटा राधेश्याम मामाजी के पास आया हुआ था और रिजल्ट के समाचार हमको कोटा में ही मिले थे । सबको बहुत खुशी हो रही थी तब शाम को मामाजी अपने दिनचर्या के सभी कार्य करके एक पैकेट गिफ्ट का लेकर घर आये थे । वो मेरे First Division से पास होने का इनाम था । बताऊं उस पैकेट  में क्या था ?? वो था मेरे जीवन का पहला फुल पेन्ट, इससे पहले 15 वर्ष की आयु तक हाफ पेन्ट(निकर) में ही रहा करते थे । मुझको आज भी ऐसा लगता है कि मेरे 71 वर्ष के जीवन का सर्व श्रेष्ठ कोई उपहार/पुरस्कार  है तो वही राधेश्याम मामाजी द्वारा दिया गया फुल पेन्ट । 

परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमको हर जन्म में ऐसे मामाजी मिलते रहें । आपके चरणों में हमारा कोटि कोटि नमन/ प्रणाम स्वीकार करें ।। 🙏🌹🌹🌹🙏

image not found